गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

चलो धूल डालते है कुछ विचारो पर

चलो धूल डालते है 
कुछ विचारो पर 
भावनाओ पर 
रिश्तों पर 
और ढक देते है 
बहुत सी यादे ।
भूल जाते है वो कदम 
जो हम साथ चले थे 
लिखते है नयी इबारत 
और नया मुस्तक़बिल ।

सुनो सुनो सुनो फरमान है राजा का

सुनो सुनो सुनो 
फरमान है राजा का 
या धर्म की जुबान है 
चार बच्चे पैदा हो 
ऐसा फरमान है 
दो एक के लिये 
दो दूसरे के लिये 
अपने लिये घन्टा 
सुनो सुनो सुनो 
मुनादी करा दो 
कि जरूरत है 
बच्चा पैदा करने वाली
मशीन की  
सुनो सुनो सुनो ।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

बहुत हुआ पृथ्वी पर जय श्री राम जय श्री राम 
जहां भी राम सोयें थे वो जग कर बैठ गए 
झांक कर देखा ये कौन भक्त नए 
( आज पूरा करता हूँ )

रविवार, 7 अप्रैल 2024

अभिशप्त

अभिशप्त आत्माएं 
अभिशप्त वजूद 
अभिशप्त वादे 
अभिशप्त इरादे 
अभिशप्त इच्छाये 
अभिशप्त भविष्य
अभिशप्त रिश्ते
अभिशप्त भावनाए 
सपोले ही चहुँ ओर
आस्तीन कैसे बचाए
अभिशप्त सब कुछ 
ये सब 
जाकर किसे दिखाये ।

जीवन एक सवाल है और जवाब भी ।

ये सीधी सपाट सड़क बचपन है 
पहाड़ की चढ़ाई जवानी है 
और 
रेगिस्तान में चलना बुढ़ापा है 
इसी में कही नदी में तैरना 
समुद्र की लहरों से खेलना 
तारो को गिनना,चांद से बात करना 
फूलो को सूंघना पत्तो को सहलाना 
और बिला वजह दौड़ना 
तथा 
अनजाने गड्ढे में गिर जाना भी होता है ।
जीवन एक सवाल है और जवाब भी ।

शनिवार, 6 अप्रैल 2024

ऐसा क्यो होता है अक्सर

मेरी कविता:

ऐसा क्यो होता है अक्सर
कि 
जिस जमीन पर आप 
बुनियाद बनाना चाहते है 
वही दलदल निकल आती है 
और 
धंस जाता है खुद का वजूद 
जिस पेड़ को मजबूत समझ 
छप्पर का आधार बनाना चाहते है 
वही इतना कमजोर निकल जाता है 
कि 
तनिक सा बोझ पडते ही 
लचक जाता है 
और 
सब कुछ जमीदोज हो जाता है 
पहाडी पर चढ़ते वक्त 
पहला ही पत्थर 
कमजोर निकल जाता है 
और 
पहले ही कदम पर घायल कर 
चढाई छोड़ने को मजबूर कर देता है ।
खैर 
हिम्मत तब भी नही हारते लोग 
और 
जारी रखते है खोज 
एक मजबूत ,पुख्ता जमीन की 
पूरी तरह लम्बे समय तक 
मजबूती से खड़े रहने वाले पेड़ की 
और 
पहाडी पर घायल होकर भी 
अन्तिम चोटी तक पहुचने के 
सही मार्ग की ।

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।
तुम्हारे अहंकार में से कुछ नहीं चाहिए हमें ।
बल्कि हम दे देते है थोड़ी सी विनम्रता तुम्हे ।
और चाहो तो एक आइना भी ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।

हम तुम्हारे अहंकार को ठुकराते है ।
तुम्हारे अहंकार में से कुछ नहीं चाहिए हमें ।
बल्कि हम दे देते है थोड़ी सी विनम्रता तुम्हे ।
और चाहो तो एक आइना भी ।

रविवार, 31 मार्च 2024

रेगिस्तान का हिरन

वो रेगिस्तान का हिरन देखा है क्या 
लगातार भागता और फिर दम तोड़ता
उसे हर थोड़ी दूर पानी दिख रहा था 
और पानी और थोड़ी दूर हो जा रहा था 
कई प्रेमी भी  ऐसा ही हिरन होते है 
और उनका प्यार रेगिस्तान का पानी । 

नाखून

नाखून

औरत को देखते ही
आँखों में नाखून उगना कब से शुरू हुआ?
जब हम असभ्य थे
या जब सभ्य हो गए!

औरत को देखते ही
उसे घायल कर देने की प्रवृत्ति कब से आयी?
जब हमारे पास शब्द नहीं थे
या 
जब हमने भाषा गढ़ ली!

औरत को देखते ही
उसमें प्रवेश करने की उत्कंठा
कब से हिलोरें मारने लगी?
जब हम कुछ नहीं जानते थे
या 
जबसे हमने ईश्वर गढ़ लिया !

औरत को देखते ही
उसपर क़ाबिज़ होने की इच्छा
कब से उत्पन्न हुई?
किसी बर्बरता को देखकर 
या जबसे हमने बर्बरता का सामान्यीकरण कर लिया


यह सब त्रासदियाँ हैं
मनुष्यता के पक्ष में लड़ने के लिए
इन त्रासदियों को ख़त्म करने के लिए
नए औज़ार बनाने होंगे

- डॉ. सी. पी. राय

रविवार, 24 मार्च 2024

आहट सुनाई पड़ रही है आपातकाल की

आहट सुनाई पड़ रही है ?
आपातकाल की 
या समय पूर्व चुनाव की 
और 
किसी भी तरह ,किसी भी हालत में 
जीत ,जीत और केवल जीत 
ताकि फिर सब स्थाई हो सके
मनमाना पन हो या तानाशाही 
कोई सामने नहीं हो 
ना विपक्ष ,न संविधान और लोकतंत्र 
महात्मा से लेकर शहीदे आजम तक 
नेता जी से लेकर बिस्मिल तक 
सब की आत्माएं 
बस टुकुर टुकुर ताक रही है 
पर आंखो में आसू के कारण 
कुछ साफ साफ दिख नही रहा है 
तो एक दूसरे से पूछ रहे है 
कि कुछ देखा क्या कुछ सुना क्या 
अपने भारत का हाल 
पर जवाब में सिर्फ सन्नाटा और हिचकी ।

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

मेरे ओठ इस कदर क्यों सिये गए है ।

जब कोई मेरे घाव को कुरेदता है न
मुझे बहुत दर्द होता है 
कोई मेरे घाव को सहलाता भी है 
तो लगता है कि कुरेद रहा है
हर बार मेरा घाव और गहरा हो जाता है 
इसलिए मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो 
न कुरेदो , न सहलाओ 
बस कोई इतना बताओ 
इतने घाव मुझे क्यों दिए गए है 
मुझे चीखने से भी क्यों रोका गया 
मेरे ओठ इस कदर क्यों सिये गए है ।

सोमवार, 11 मार्च 2024

वो सब आगे निकल गए

वो सब आगे निकल गए 

जो जो काफ़ी दिन साथ चले 
गलबहिया करते हुए
एक दिन अचानक थोड़ा ठिठके
उनके पीछे होते ही 
मैं लहूलुहान हो गया 
छटपटाया और गिर गया 
और मुझे तड़पता छोड़ 
वो तेजी से आगे निकल गए 
ये कहानी आख़िरी कभी नहीं हुयी 
और गिनती अब तक नहीं रुकी ।

शनिवार, 9 मार्च 2024

क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ?

क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ? 

तब भी शोर था पर नारो का 
सार्थक नारो का 
कही इंकलाब जिंदाबाद
कही महात्मा गांधी जिंदाबाद 
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा 
करो या मरो 
अंग्रेजो भारत छोड़ो 
दुश्मन स्पष्ट था और उद्देश्य भी 
फिर अचानक एक शोर हुआ 
ठाय ठाय ठाय
और
फिर देश में गूज उठा नारा 
महात्मा गांधी अमर रहे 
थर्रा गया भारत और मानवता 
पर सम्हाल कर चलता रहा भारत 
और 
पहुंच गया ऊंचाइयों पर 
आज फिर शोर है 
आजादी की लड़ाई का विरोध करने वालों का शोर 
कर्कश शोर क्रोधित घृणा लिए 
जय श्रीराम जय श्रीराम 
गोडसे जिंदाबाद फासीवाद जिंदाबाद 
नफरत भय आशंका से घिरा देश 
नारो नारो में कितना फर्क होता है ।
अंग्रेजो के आतताई शासन से तो बच निकला 
पर क्या अभी भी बच जाएगा हिंदुस्तान ?

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

धुप अन्धेरा है

धुप अन्धेरा है 
चारो ओर 
जमीन से आसमान तक 
क्या आसमान के परे भी
कुछ होगा 
जहा कुछ रोशनी होगी 
हमारे हिस्से की भी ।

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

युद्ध

मेरी कविता 
"युद्ध "

राम कृष्ण बुद्ध 
मुहम्मद और ईसा 
नही खत्म कर पाये 
मानव के विनाश का युद्ध
ईसा को छोड सब 
खुद भी तो युद्धरत रहे 
और बो गये 
भले बुरे के नाम पर 
युद्ध की खेती 
जो हजारो साल से
फैलती ही जा रही है 
कौन मिटायेगा 
हर भाषा से 
ये शब्द "युद्ध "?

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

जीवन केवल मृग मरीचिका है

जीवन केवल मृग मरीचिका है 
विचार कुलांचे भरते रहते है 
रेगिस्तान के पानी के 
एहसास के साथ 
भागता रहता है इंसान 
और 
पानी के लिए तड़प 
दौड़ाती रहती है 
यहां से वहां तक
वहां से वहाँ तक ।
कोई साथी हो 
जो चिकोटी काट कर 
यथार्थ के धरातल पर उतार दे 
और 
वो भी नही है 
तो भटकन अनन्त है ।

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

हिंदू कौन

हिंदू कौन ? 
और 
हिंदुस्तानी कौन ? 
जो इंसान हो 
और 
कर्म करे ईमानदारी से 
या कुछ न करे 
या 
लूट घूस झूठ सब करे 
इसपर सब मौन ।

सोमवार, 22 जनवरी 2024

जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो

चारो तरफ है कानफोडू शोर
कि राम आयेंगे राम आयेंगे 
राम है हतप्रभ की कहा गया मैं
मैं तो हूं कण कण में 
शबरी के बेर में केवट की नाव में 
पत्थर बनी अहिल्या में 
ये कलयुग वाले मुझे कहा ढूंढ रहे है 
सब जगह ढूंढ रहे है शोर मचा कर 
बस नही ढूंढ रहे है अपने मन में 
क्योंकि मन आइना होता है
जो शर्मिंदा कर सकता है
भाई से मुकदमा लड़ रहे भक्तो को
अपनी सीता को घसीटते हुए भक्तो को 
अहिल्याओ से बलात्कार करते भक्तो को 
शबरी और केवट की उपेक्षा करते भक्तो को 
मिलावट करते ,जहर बेचते 
मुंनाफाखोरी करते भक्तो को 
बच्चियों को देख कर 
आंख में नाखून उगा लेने वाले भक्तो को
अरे मूर्खो मैं तुम्हे कभी नही मिलूंगा 
मैं तो महल में नही जंगल में हूं
शबरी और केवट की झोपड़ी में हूं ।
महल मुझे रास नहीं आता है मेरा दम घुटता है 
और तुम मेरा दम घोट देना चाहते हो 
और चाहते हो कि में तुम्हे मिल जाऊं 
मैं जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो ।।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

जीवन का कोहरा

कितना भयानक
कुहरा हो जाता है 
अकसर आजकल 
कुछ भी नही दीखता
थोडा सा भी आगे 
पर 
ये कुहरा तो
इस मौसम मे होता है 
थोडे दिन 
कुछ लोगो के जीवन मे तो 
पता नही कब से 
कुहरा है 
कुछ भी स्पष्ट नही 
अगले पल का भी 
इस कुहरे से 
जीवन का कुहरा 
ज्यादा भयानक होता है

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

अब इतनी ठंड क्यो लगती है

अब इतनी ठंड क्यो लगती है 
तब तो बिलकुल नही लगती थी 
जब होती थी एक हाफ़ शर्ट 
जब स्वेटर भी नही पहनते थे 
ना पैर में जूते और मोजे 
बस चप्पल पहन निकल लिए 
तब भी ठंड कहा लगी थी 
जब जनवरी की इसी ठंड में 
पहुँच गए थे शिमला 
फिर कुफ़री में बर्फ़ के पहाड़ पर 
कितना खेले थे बर्फ़ से 
कितने लेटे थे बर्फ़ में 
और कितने बर्फ़ के गोले बना कर 
मारे थे एक दूसरे को 
पर ठंड तो नही लगी थी 
बर्फ़ के गोले फेकने से गर्मी आयी थी 
जो पिघल गयी थी 
तब अब क्यो लग रही है ठंड ?

बुधवार, 10 जनवरी 2024

अभियुक्त

देश के मालिक नागरिक
कभी भी बन सकते है अभियुक्त 
आजादी मिल गई तो क्या
हक भी मांगोगे ?
मांगोगे रोटी और रोजगार 
कपड़ा और मकान 
और इतने बड़े अपराध में भी 
अभियुक्त नही बनोगे ?
निकलोगे सड़क पर हाथ लहराते हुए
और नारे लगाते हुए
और डालोगे खलल 
साहब बहादुर की नीद में 
फिर भी अभियुक्त नही बनोगे ? 
गीता में पढ़ाया है 
सिर्फ कर्म करो सत्ताधीशों के लिए 
और कोई इच्छा मत करो 
और 
ये नही मानने वाले को द्रोही माना जायेगा 
देशद्रोही ,धर्मद्रोही और राजद्रोही ।
अभियुक्त अभियुक्त और अभियुक्त ।

नारी तुम देवी हो

नारी तुम तो देवी पर मंदिर में 
नारी तुम तो श्रद्धा हो पर पन्नो में 
नारी तुम तो शक्ति हो नवरात्रि में 
नारी तुम तो सीता हो रामायण में 
नारी तुम तो सावित्री हो 
पति के लिए लड़ जाने वाली 
ये अलग बात है कोई पति नही लड़ा 
पत्नी की खातिर 
तुमको खुश रहने को क्या  कम है 
तुम मंदिर में पूजी जाती 
नवरात्रि में घर घर आती 
पर नारी तुम क्या हो तुम भी जानती 
बर्तन कपड़े चूल्हा पोछा और बिस्तर है 
इतना ही संसार तुम्हारा वरना डंडा 
जिस दिन द्रोपदी बन केश बांध लोगी तुम 
उस दिन हा उस दिन तुम शक्ति हो जावोगी ।

गुरुवार, 4 जनवरी 2024

इतने बाण लग चुके

कुछ लोगों के शरीर ही नही 
बल्कि आत्मा तक पर 
इतने बाण लग चुके होते है 
जमाने के 
कि 
कोई और बाण 
लगने की जगह ही 
नही बची होती है ।
अगर कोई चलेगा 
तो 
बाण पर ही लगेगा 
और 
उसे और गहरे तक 
पैबस्त ही कर देगा न 
घाव 
और कितना गहरा हो जाता है 
ऐसे में 
और दर्द भी कितना बढ़ जाता है 
उस बाण से ।

अगर राम जानते होते

राम को याद आ गई अपनी अयोध्या 
और उतर आए हाल चाल लेने 
देखा उन्होंने हलचल , नारो का शोर 
तो पूछ लिया किसी से 
क्या ये अयोध्या ही है 
जवाब मिला हा तो भागने लगे वापस 
पकड़ लिया नारा लगाती भीड़ ने 
पूछने लगे की कौन हो 
और ये बनवासी का वेश क्यों 
क्या किसी और धर्म के हो 
और कोई कांड करने आए हो वेश बदल कर 
राम बोले मैं राम हूं 
जिसका बहुत जोर से मारा लगा रहे हो
पर इतने गुस्से में क्यों हो तुम लोग 
ऐसा तो मेरा महल भी नही था 
जैसा तुम लोग बना रहे हो 
मुझे महल में रहना कहा पसंद
मैं तो बनवास में खुश था 
क्योंकि महल ने दिया बनवास 
और फिर छीन लिया सीता 
पर तुम लोग मेरी प्रतीमा 
इस महल में क्यों लगा रहे हो 
क्यों बहाया खून तुम लोगो ने और किया झगड़ा 
जबकि अयोध्या का तो मतलब ही था 
जहा युद्ध नही हो 
और क्या आडंबर कर रहे हो 
अरे अगर मैं महल में रहा होता 
तो बस होता एक राजा 
लेकिन बनवासी बनके बन गया में राम 
जिसकी कथा सुनते और सुनाते हो
भीड़ उग्र हुई की जरूर ये है कोई पाखंडी 
कोई हिंदू और राम विरोधी 
पर कोई हाथ उठाता
तभी प्रकट हो गए विराट रूप में हनुमान 
और भीड़ भागने लगी 
की ये कैसा विशाल बानर है 
कोई बोला बंदूक लाओ गोली चलाओ
राम बोले की जब तुम मुझे जानते नही हो 
तो व्यर्थ का ये सब आडंबर क्यों 
जब तुम मुझे मानते नही हो 
तो इसने साल झगड़ा क्यों
अगर जानते होते और मानते होते 
तो मेरा मंदिर और मूर्ति नही बनाते
बल्कि मुझे और हनुमान को अपनाते 
तब दंगा नही करते 
बल्कि राम बनने 
और सबको राम बनाने की कोशिश करते 
तब ये तनाव और शोर नही होता 
शोर और क्रोध मुझे पसंद नही है 
जाओ घरों में जाओ और सोचो 
मुझे मंदिर में नही अपने दिल में बैठाओ 
में वही मिलूंगा
अभी तो मैं चलूंगा 
क्योंकि घुटन हो रही है मुझे 
इस नकली राजनीतिक अयोध्या में 
चलो हनुमान 
और चले गए 
अनंत आकाश में राम और हनुमान भी 
चर्चा अब भी यही थी की कोई मायावी था 
बच के निकल गया 
हमारा कारज निस्फल करने आया था 
और साथ में मायावी बंदर भी लाया था 
वही खड़ा 
एक सचमुच का राम और हनुमान भक्त बोला 
अरे मूर्खो जो सच में सामने था 
और खुद को पाने का मार्ग बता रहा था 
तुम उसे दुत्कार रहे हो  
और जो है ही नही उसे सजा संवार रहे हो ।

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

जिन्दगी का ठहराव

कभी कभी जिंदगी में 
गहरा ठहराव क्यों आ जाता है 
कि 
सब कुछ ठहर जाता है
ठहर जाती है सांसे 
और 
शरीर भी ठहराव का शिकार हो जाता है
मन ठहर जाता है 
तो 
मस्तिष्क भी ठहरा हुआ होता है
पूरा का पूरा अस्तित्व ठहर जाता है 
और 
लगता है कि 
तकदीर भी ठहर गयी है 
और तदबीर भी । 
लगता है 
चौराहे पर खड़े है 
साँसे रोके हुए 
और 
चारो तरफ से 
शोर मचाती गाड़ियां चली जा रही है 
और 
समझ ही नहीं आ रहा 
कि किधर जाये । 
ज्यो ही किसी तरफ पैर बढ़ाते है 
कोई तेज रफ़्तार गाडी और उसका शोर 
वापस पैर खीच लेने को मजबूर कर देता है 
और ठिठक कर वही साँस बांधे 
खड़ा रहने को मजबूर कर देता है ।
आखिर क्यों ऐसा ठहराव आ जाता है 
जिंदगी में कभी कभी ।

रविवार, 24 दिसंबर 2023

आत्मा तो मत बेचो

#आत्मा_तो_मत_बेचो 

जमीन बेचो , पेड़ पौधे और प्रकृति बेचो ,
 मिट्टी बेचो , फल फूल बेचो , योग बेचो , 
मंदिर मस्जिद और ईश्वर बेचो 
पर आत्मा 
वो भी बेच रहे हो रोज 
और उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती 
आत्मा नहीं बिकी तो सब बच जायेगा 
इंसान भी और इंसानियत भी ।
जरा सोचो और जरा आत्मा की सुनो ।

शनिवार, 16 दिसंबर 2023

बस घिसट रहा हूँअपनी लाश लिए

मैं ढूंढ रहा हूँ खुद को

कुछ दिनों से 

पर भटक जाता हूँ

रास्ता तलाश करते करते

केवल अँधेरा हाथ आया है 

अब तक

अँधेरे में रास्ता नहीं दीखता

तो कैसे ढूंढ मैं खुद को

रास्ता तलाश करते करते

कितनी बार गिरा मैं

और कितनी बार टकराया हूँ

पता नहीं किस किस चीज से

सर फूट गया है टकरा कर

बह रहा है खून लगातार

केवल सर क्यों ,यहाँ तो

अंग अंग घायल हो गया है

और 

दिल तो छलनी हो गया है

मन और अस्तित्व 

विलीन हो गए है

कही अनंत में

और मैं ,

मैं हूँ ही कहा

मुझे तो ख़त्म कर दिया है

संघर्ष और क़िस्मत की जंग ने 

तो क्या ढूँढना खुद को

बस घिसट रहा हूँ

अपनी लाश लिए 

अब 

अपनी लाश के बोझ ने भी 

थका दिया है बुरी तरह

नहीं चल पाउँगा और 

अपने पैरो पर 

पर कोई कंधे भी तो नहीं

जिनका सहरा मिल जाये 

या 

जिनपर लद कर जाऊं मैं ।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

शरीर भी कितना बेईमान है

ये शरीर भी कितना बेईमान है 
पर खुद को समझता महान है 
पर कही भी सरेंडर कर जाता है
कही अकड़ता कही शिथिल पड़ जाता है 
मच्छर भी काट ले तो बाप रे बाप 
कांटा भी चुभ जाये तो हाय ही हाय 
जरा सा टूट जाये तो औकात बताता है 
इश्क मे कदमो मे लेट जाता है 
नफरत मे अपनी औकात बताता है 
कितनी बड़ी बड़ी बाते बनाता है 
दूसरो से डरता है अपनो को सताता है 
बड़ी से बड़ी डीँग हाकता है 
मौका पडने पर लुढक जाता है 
जी हा पर शरीर तो शरीर है 
कोई मन ,दिल दिमाग और आत्मा तो नही 
जो इसे जैसे चलाते है वैसे चल जाता है 
शरीर बस पुतला है जिसमे दिल है 
शरीर एक अस्तित्व है जिसमे दिमाग है 
शरीर को बस शरीर ही रहने दो 
इसे कम्प्यूटर और गड़ित मत बनाओ 
इसका अपने दिमाग से प्रयोग करो 
और कुछ बुरा हो जाये यो भूल जाओ 
चलो शरीर का भरपूर उपयोग करो 
इसका जितना हो सके प्रयोग करो 
तभी शरीर शरीर रहेगा दौडेगा खेलगा 
जी हा इसकी भाषा को समझो तो 
फिर ये खूब खूब और बहुत खूब बोलेगा ।
अपने शरीर को खूब प्यार करो 
दूसरे के शरीर से भी मत इंकार करो ।
क्योकी शरीर नितांत क्षणभंगुर है 
जल जायेगा 
फिर क्या पता कब 
आप की किस्मत मे वापस आयेगा ।

किस बात के नाते

आप दलगत राजनीति छोड़ दे 
दल वाले आप को छोड़ देते है 
आप राजनीति छोड़ दे
राजनीति वाले आप को छोड़ देते है 
आप नौकरी से बाहर तो
वहाँ के रिश्ते खत्म 
आप काम के न हो 
और 
बोझ बन जाये तो 
सारे रिश्ते खत्म 
जी हा 
रिश्ते भी व्यापार है 
पूरा कारोबार है 
मुनाफे के साथ रहते है 
और घाटा छोड़ 
मुनाफे की तरफ बहते है 
ये मच्छर की तरह है 
जो लैम्प पोस्ट जल जाये
सारे मच्छर उधर भाग जाते है 
आप का बुझ गया तो
किस बात के नाते है 
इसलिए चाहे जो करो
उपयोगी रहो 
कही से भी तेल लाओ या बिजली 
पर जलते रहो 
फिर पूरी आभा 
पूरे गौरव के साथ चलते रहो ।

सोमवार, 4 दिसंबर 2023

अपने हिन्दूस्तानके लिये उठो ।

पहले अपने हिन्दूस्तान के लिये उठो 

ऐ पढने लिखने वालो उठो 
ऐ कविता करने वालो उठो 
ऐ नाटक करने वालो उठो 
सब मंच सजाने वालो उठो 
सब कलम चलाने वालो उठो 
सब दिमाग लगाने वालो उठो 
सब आवाज उठाने वालो उठो 
कि 
कोई तुमारे अनंत नील गगन 
और तारो को छीन न ले 
उठो की चन्द्रमा तुम्हारा ही रहे 
प्रेम के लिये प्रेरित करता रहे 
उठो कि सूरज पर 
कोई अधिकार न जमा ले
और वो सबको रोशनी देता रहे 
उठो की हवाए 
किसी की कैद मे न हो 
स्वतंत्र चलती रहे 
उठो की हरियाली 
किसी की जागीर न हो
सबकी हो 
उठो की फूलो को 
खिलने से रोका न जा सके 
और सब फूल सब रंग
गुलजार करते रहे बगीचे को 
उठो की नदिया 
कोई सोख न ले 
और वो बहती रहे निरंतर
स्वछ और निर्मल 
उठो की आज़ादी महफ़ूज रहे 
उठो की जम्हूरियत 
किसी की जूती न बने 
उठो की लव खामोश न हो 
उठो कि तुम्हारी धड़कन
और तुम्हारी सांसे 
तुम्हारी ही हो 
उठो कि दुनिया 
अब शमसान न बने 
उठो की चंगेज स्टालिन
हिटलर मुसोलिनी 
अब कोई इन्सान न बने 
उठो अपनी आन बान
शान के लिये उठो 
उठो मानवता और 
दुनिया के लिये उठो 
पहले अपने हिन्दूस्तान
के लिये उठो ।

रविवार, 12 नवंबर 2023

कहो राम तब क्यो आये थे


कहो राम तब क्यो आये थे
अब चुप होकर क्यो बैठे हो
बहुत थके हो तुम लंका से
या फिर क्यो रूठे रूठे हो
रूठे हो खुद से या कैकेयी से
या मंथरा से या अपनी माँ से
जो तुम्हरी खातिर लड़ी नही
और राजपाठ को अड़ी नही
यदि खुद से रूठे तो अच्छा है
ये  रूठना  फिर  सच्चा  है
फिर मर्यादित कैसे होते
ये सवाल भी बहुत बड़ा है 
तब तो केवल एक था रावण
अब रावण की फौज खड़ी हैं
तब तो थी  छोटी  सी लंका
अब की लंका बहुत बड़ी है
तब क्या सब बहुत बुरा था
अब क्या रामराज्य आ गया 
सोचो तब क्यो तुम आये थे
और अब क्यो उदासीन हो
आते तो तुम अब भी लेकिन
मंदिर मस्जिद पर आते हो
या  त्यौहार में आ जाते हो
या फिर प्रचार में आ जाते हो

क्या कमाल था वो पत्थर थी 
तुमने उसमे जान डाल दी
बहुत डरा था नाव लिए वो
वो नाव जो वही खड़ी थी 

दीपक बन जलते रहना है ।

कहा अकेला हूँ मैं देखो
सूरज चाँद सितारे  मेरे
चिड़ियों का कलरव है मेरा
धूप है मेरी धूल है मेरी
बादल मेरे बारिश मेरी
घर की गर वीरानी मेरी
तो सडंको के शोर भी मेरे
बाज़ारों की हलचल मेरी
और नाचता मोर भी मेरा
छत मेरी दीवारें मेरी
घर में जो है सारे मेरे
बातें मेरी और राते मेरी
वादे मेरे और यादें मेरी
और किसी को क्या चाहिए
इतना तो सब कुछ घेरे है
जीवन क्या है बस डेरा है
आज यहाँ है और कही कल
कुछ साँसों का बस फेरा है
सभी अकेले ही आते है
सभी अकेले ही जाते है
कौन अकेला नहीं यह पर
भीड़ में है पर बहुत अकेले
मैं अकेला घिरा हूँ कितना
इतना सब कुछ पास है मेरे
लोगों के जीवन में देखो
विकट अंधेरे बहुत अंधेरे
उन सबसे तो मैं अच्छा हूँ
जीवन को अब क्या चाहिए
थोड़ी ख़ुशियाँ थोड़ी साँसे
मैं तो अब भी एक बच्चा हूँ
जल्द बड़ा भी हो जाऊँगा
फिर से खड़ा भी हो जाऊँगा
कैसा अकेला कौन अकेला
दूर खड़ा अब मौन अकेला
मेरे गीत और मेरे ठहाके
दूर रुकेंगे कही पे जाके
तब तक तो चलते रहना है
दीपक बन जलते रहना है ।

अज्ञात से युद्ध

अज्ञात से युद्ध  ?

बम,मिसाइल ,गोलियां ,गोले 
और 
संगीन किसी को नहीं पहचानती है 
क्योंकि उनके दिल नही होता 
उनके दिमाग नही होता 
वो खुद से कुछ नही करती 
कोई और चलाता है इन्हे 
ये गुलाम है किसी दिमाग के 
ये गुलाम है किसी उंगली के 
पर इंसान चाहे किसी देश का हो 
चाहे कोई भाषा बोलता हो 
और 
चाहे जिस बिल्ले वाली वर्दी पहने हो 
उसके तो आंखे होती है 
दिल और दिमाग भी होता है 
फिर कैसे कहर बन टूट पड़ता है
दूसरे इंसान पर 
जिसे खुद जानता भी नहीं 
जिससे उसकी दुश्मनी भी नही ?
फिर कैसे चलनी कर देता है उसे 
कैसे घोप देता है संगीन 
या उड़ा देता है बम से
बिना विचलित हुए 
क्या नही दिखता सामने उसे 
अपना भाई या बेटा 
नही कर पाता है कल्पना 
एक उजड़े घर की 
एक विधवा पत्नी , टूटे मां बाप
और अनाथ बच्चों की
चाहे सामने वालो के हो 
या ख़ुद के 
कैसे इतना बेदर्द और क्रूर हो जाता है 
कोई भी हाड़ मांस का जीवित इंसान ? 
युद्ध में कोई नहीं जीतता 
सब केवल हारते है 
और बर्बाद हो जाते है मुल्क 
उससे ज्यादा इंसानियत
युद्ध जमीन पर नही 
औरत की  देह 
और 
बच्चो के जीवन पर लड़ा जाता है 
और अंत में खत्म हो जाता है युद्ध 
एक मेज पर चाय के साथ वार्ता से 
तो पहले ही क्यों न 
रख दी जाए ये मेज और चाय 
इंसान की मौत और युद्ध के बीच में ।
आइए मेज पर बात करे हर दिन हर वक्त ।

शनिवार, 11 नवंबर 2023

मेरी दीवाली

मन रही है दीवाली 
हर साल की तरह 
कम होते गए घर से लोग 
अब रह गए हम दो
लोगो के घरो में 
बने है पकवान 
मेरा बेटा भी होटल से 
लाया है पकवान 
लोगो के घरो में 
सजी है रंगोली 
मेरे बेटे ने भी 
कुछ रख दिया है जमीन पर 
लोगो के बच्चे और बड़े भी 
छोड़ रहे है पटाखे 
मैं बिस्तर पर पड़ा 
सुन रहा हूँ आवाजे 
और 
मेरा बेटा बाहर खड़ा 
देख रहा है सबको फोड़ते 
मेरे घर भी आई है मिठाई 
पर 
पता नहीं क्यों 
मिलने आने वालो की तादात 
घट जाती हैं बुरी तरह 
जब किसी पद पर नहीं होता हूँ मैं 
हमने खरीदा है कुम्हार के बनाये 
दिए और लक्ष्मी गणेश 
थोड़ी सी खील और बतासे भी 
ताकि इनको बनाने वालो की 
कुछ मदद हो जाये
और हार न जाये ये 
देश के दुश्मन चीन से 
और मन गयी 
मेरी और मेरे बेटे की भी दीवाली ।

बुधवार, 8 नवंबर 2023

दिए जलाओ खूब जलाओ



दिए जलाओ खूब जलाओ 
इतने जलाओ कि डूब जाओ 
और भूल जाओ भूख अपनी 
दर्द अपना औ चीख अपनी 
जहां भी मिले जगह कोई भी 
मंदिर कोई या नदी किनारा 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
और हर बारी गिनते जाओ 
पिछली बारी जितने जले थे 
उससे ज़्यादा अब जलाओ 
नए नए कीर्तिमान बनाओ 
कैसी ग़रीबी कौन है भूखा 
कैसी बेबसी और बेकारी 
ये सब बाते बेमतलब की 
चकाचौंध में इन्हें भुलाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
सीमा पर जो शहीद हुए है 
वो सब है गरीब के बच्चे 
सुरसतिया की लाज लूटी 
या गौहरबानो उठा ली गयी 
पेड़ो पर लटके किसान हो 
या फ़ुटपाथो की आबादी 
इन सबसे तो आँख फेर लो 
धन्नासेठो को चमकाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
उसके घर में तेल नही है 
कल दिए से तेल वो लेगा 
और वो है पत्तों पर खाता 
कल दिए वो ले जाएगा 
ये भी तो एहसान बहुत है 
इन एहसानों को छपवाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ 
घर में अंधेरा है लाखो के 
उनको उजाला ख़ुश कर देगा 
पेट में जिनके आग जल रही 
उनके पेटो को भर देगा 
जो क़िस्मत में वही हो रहा 
उन सबको ये पाठ पढ़ाओ 
राम जी अग़ला जन्म बनाए 
ऐसा भाव उनमें  जगाओ 
दिए जलाओ खूब जलाओ ।

मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

कुछ भी करो पर उपयोगी बने रहो

एक उम्र के बाद आप उपयोगी नही होते 
किसी के लिए 
बल्कि लोगो की जरूरत होती है आप को 
तब !
क्या आप ने कभी फुटबाल खेला है 
हर खिलाडी फुटबाल को सरका देता है 
दूसरे की तरफ एक रणनीति से 
पर जिन्दगी के मैदान पर 
लोग फुटबाल फेंकते रहते है 
दूसरे की तरफ बला समझ कर 
खेल का मैदान हो या जिन्दगी का 
फुटबाल पैरो से ठोकर खाने के ही काम आती है
और घिस जाने पुरानी हो जाने पर फेंक दी जाती है 
कूड़ेदान मे
इसलिए कुछ भी करो पर उपयोगी बने रहो ।

रविवार, 29 अक्तूबर 2023

ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारी नहीं

जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 

लोग आत्महत्या कैसे कर लेते है 
कितना तकलीफदेह होता है 
जान कर जान देना
जहर पिया तो उसका डर 
गोली चलाने मे कांपते हाथ 
और 
उसके दर्द का एहसास 
नस काटी तो दर्द 
और 
बहते खूँन की दहशत 
और 
फासी लगाया तो कितनी हिम्मत 
गर्दन लटक जाने 
सांस घुट जाने की तकलीफ ।
कैसे हिम्मत आती है 
और 
कर लेने के बाद 
आखिरी क्षणो मे 
सब किया वापस हो जाये
का ख्याल आता है क्या 
क्या तब जिन्दगी से
प्यार महसूस होता है ?
क्या तब इच्छा होती है 
कि 
लड़ले अंतिम लडाई पर ये नही ।
क्या ये क्या वो 
पर ये सब बतायेगा कौन ?
न ये न वो ।
और 
पीछे छूटो का दर्द
असहाय स्थिति
अनिश्चित कल 
और 
मौन मौन बस मौन ।
मत करो ऐसा 
जिसका कोई जवाब नही 
जिसका कल कोई हिसाब नही ।
लडो और खूब लडो 
क्योकी जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 
अपनो की भी अमानत है ।

शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

कौन लाएगा उजाला भारत की जिन्दगी मे ।

दीपावली पर 
बड़े शहरो मे 
दुकानो पर 
महंगी गाडिया 
कम पड़ जाती है 
और 
दिये उदास 
पडे रहते है 
जमीन पर 
गरीब 
एक दिया भी 
नही खरीद पाता है 
सेंसेक्स और शेयर 
उछल रहा है 
और 
सोना चाँदी भी 
पर 
एक और चीज 
उछल रही है 
किसानो और 
बेकारो की 
आत्महत्या की संख्या 
सचमुच आज भी 
एक ही देश मे दो है 
एक 
10 फीसदी इंडिया 
वैभव से संपन्न 
जिन्हे देख कर 
तय होती है योजनाये 
और आँकड़े 
दूसरा 
90 फीसदी भारत 
बदहाल और उपेक्षित
मिली थी रात को 
12 बजे आज़ादी 
पर 
90 फीसदी भारत 
की जिन्दगी मे 
आज भी अन्धेरा है ।
कौन लाएगा उजाला 
भारत की जिन्दगी मे ।

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

आखिर ये जंग क्यो ?

आखिर ये जंग क्यो ?

कम या ज्यादा 
बर्बाद दोनो हो रहे है 
रुस भी और युक्रेन भी 
इंसान ही मर रहे है 
रुस मे और युक्रेन मे भी 
एक दूसरे को मारने वाले
एक दूसरे को जानते तक नही है 
पर मारे जा रहे है
एक दूसरे को 
टूट रहे है घर,पुल,सड़के
कारखाने ,स्कूल और अस्पताल 
बन रहा है मलवे का ढेर 
सिंचित हो रही है 
लहू से जमीन दोनो की
जंग ने हमेशा लहू पिया 
और 
तबाह किया सब कुछ 
जंग नही थी तब क्या नही था
जंग से क्या मिला है  
आखिर ये जंग क्यो ?

उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रातें 
कितनी स्याह होतीहै 
क्यो होती है 
इतनी स्याह रातें 
ज्यो ही सूरज 
पच्छिमी की खोह में 
डुबकी लगाता है 
पूरब से फैलने लगती है 
स्याह रात 
टिमटिमाते हुई 
रोशनियां भी 
जुगनू से ज्यादा 
कुछ नही होती 
कितनी भयानकता 
समेटे होती है स्याह रात 
जिंदगी गर्त हो जाती है 
धीरे धीरे इसके आगोश में 
और 
कितना अकेलापन 
तारी हो जाता है 
जिसमे जिंदगी 
सवाल बन जाती है 
इन सवालो का 
कोई जवाब नही होता 
खुद से ही बाते करना 
खुद को तसल्ली देना 
खुद के अकेलेपन से लड़ना 
और लड़ते लड़ते 
नीद के लिए लड़ना 
ताकि आंख बंद कर 
अनदेखा कर सके 
इस स्याह अंधेरे को 
और अकेलेपन को 
पर 
कितना स्याह है सब कुछ 
चलो आंखे बंद कर लेते है 
और 
सोच लेते है 
की 
अकेले नही है हम 
तमाम सूरज उग गए है 
हमारी जिंदगी में ।
उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

कुछ सवाल

मेरी कविता 

कुछ सवाल है 
जो अनुत्तरित है 
कुछ जवाब है 
जो खुद 
सवाल बन गए है 
सिलसिला टूटता ही नही 
न सवालो का 
न जवाबो का 
क्रिया और प्रतिक्रिया जारी है 
पर 
कही तो कोई दीवार होगी 
या 
होगा इस सफर का डेड एंड 
जो रोक देगा क्रिया को 
और 
प्रतिक्रिया को भी 
और 
फिर सब होगा शांत शांत ।

नदी में तैरती लाशें

नदी में तैरती लाशें 

जब लाइन लग गयी लाशों की
जब बोली लगने लगी लाशो की 
जब कंधे की क़ीमत हो गयी लाशो की 
जब लकड़ी ब्लैक होने लगी लाशो की 
जब टोकन मिलने लगे जलने को लाशो की 
तब
हाँ तब लाशें उठी और चल पड़ी 
नदियों की तरफ़ 
कि आग नही तो पानी ही सही 
जलेंगे नही तो कछुओं या किसी और 
जानवरों के भोजन के काम आ जाएँगे
आख़िर इनकी राख भी तो नदी में ही जाती है 
और 
इन लाशो को तो अपने लेने ही नही आए 
क्योंकि लाश से रोग फैलता है 
पर लाश की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस से नही 
इसलिए 
इन लाशों ने ख़ैरात से जलने से इनकार कर दिया 
और ख़ुद जाकर बह गयी नदी में 
किसी सरकार की कोई गलती नही 
गलती लाशो की है 
की उसने अपनो को 
इतना कायर और स्वार्थी क्यो बनाया ।
नदी तो प्रतीक है इस व्यवस्था का 
और लाशें भारत की जनता का ।

ईश्वर क्या है

ईश्वर क्या है ? 
जो अज्ञात था है और रहेगा 
या 
प्रकृति ही ईश्वर है 
क्योंकि 
पत्थर पेड़ और 
विभिन्न पशु पक्षी को माना 
हमने ईश्वर ,
जो हमारा नुक़सान कर सका 
या 
जिससे हम डरे उसे माना ईश्वर 
फिर हम समझदार हो गए 
तो गढ़ने लगे ईश्वर के स्वरूप 
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने अपने ईश्वर 
ईश्वर एक डर है 
ईश्वर हमारा लालच है 
ईश्वर जीने की इच्छा है 
ईश्वर मौत का डर है 
ईश्वर हथियार बन गया हमारा 
ईश्वर व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने नही देखा ईश्वर 
किसी से नही मिला ईश्वर 
पर 
डीह बाबा , सम्मो माई 
जियुतिया माई से लेकर 
संतोषी माता तक 
और 
साई बाबा से लेकर 
तमाम पत्थरों तक फैल गए ईश्वर 
फिर ईश्वर बनने का चस्का 
इंसानो में भी लग गया 
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब ईश्वर अज्ञात था 
या 
उसके प्रतीक दुर्गम जगहों पर थे 
मनुष्य ने अपने स्वार्थ में गली गली 
चौराहे चौराहे पर बैठा दिया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
ईश्वर के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
हमेशा पाप और बुरा करो 
पर बीच बीच में कही नहा आओ 
पूजा करते रहो कराते रहो 
और जिसको जो ठीक लगे 
उस धर्म स्थान पर जाते रहो 
पाप धुल जाएगा 
और 
इस व्यवस्था से बढ़ने लगा पाप 
जब कोई एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार ले लेता था ईश्वर 
कहानिया तो यही बताती है 
पर जब बुरो की फ़ौज हो गयी 
तो 
अपने आसमान में छिप गया ईश्वर 
बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और 
किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि 
इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो 
और 
ईश्वर से परिचय का दावा करने वाले 
ख़ुद भी बन बैठे है ईश्वर 
जिसे देखा ही नही 
उसे क्या मानना ईश्वर 
ओकसीजन आज ईश्वर है 
और 
उसके लिए पेड़ ईश्वर है 
पानी भी ईश्वर है 
जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
इसलिए मंदिर मस्जिद नही 
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर कल्पना है 
उस पर कहानी और कविता खूब लिखो 
पर प्रकृति के साथ दिखो 
ईश्वर शक्ति है तो उससे डरो 
और कोई पाप मत करो 
ईश्वर के ईश्वर मत बनो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियों को बचाओ 
देवस्थलो के बजाय 
जीवन स्थलो पर पैसा लगाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।

मिसाइलो के दिमाग नही होता

बम और मिसाइलो के दिमाग नही होता 
बम और मिसाइलो के दिल भी नही होता 
नही जानते बम की वो क्या करते है 
लाशे देख कर मिसाइलों के आसू नही निकलते 
इन्हे नही पता कि घर या बस्ती कैसे बसती है 
कोई हथियार इंसान को नहीं पहचानता है 
इनके धमाके ये खुद नही सुन पाते है 
फट जाने पर उनके खून नही निकलता है 
पर इन्हे चलाने वाले हाथ तो सब जानते है । 

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल 
इंसा तुमको समझ न पाया सालो साल 
स्त्री का व्रत हो या रोजा हो मुस्लिम का 
सबने ही तुमसे शक्ति पाया सालो साल 

मां ने बच्चो को भरमाया सालो साल 
भूखे को रोटी बतलाया सालो साल 
चरखा बुढिया कात रही है समझे थे 
चादनी रात में खीर बनाया सालो साल 

( पूरा करना है )

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

सूरज क्या तुम सत्ता हो

सूरज तुम दिल्ली की सत्ता 
आये थे अहंकार में चूर 
गर्म लावा अहंकार का 
सब रहते है शांत
सहते है ताप तुमारा
नही मिलाते आंखे तुमसे
इंतजार करते है
जब ठंडे हो जागोगे तुम 
अब तुम्हारी शाम हो गई 
अब स्वीकार करो चुनौती 
आंख मिलाओ अब तुम सबसे
क्यों छुपने को भाग रहे हो 
डूब रहे हो तुम पश्चिम में 
फिर वो अहंकार था कैसा 
जो उठता है वही डूबता
क्या ये तुमको पता नही था 
इसलिए मदमस्त बहुत थे 
देखो अब तुम अस्त हो रहे 
डूब रहे हो किसी खोह में 
फिर जब आना सोच कर आना 
तुम भी अंतिम सत्य नही हो ।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

ये दर्द है जो गया नहीं

वो दर्द दे कर चला गया ।
ये दर्द है जो गया नहीं 

मैं तो तड़प के रह गया 
उसने लौट कर देखा नहीं 

मैं चीखता ही रह गया 
उसने कुछ भी सुना नहीं 

उसकी याद में बेहाल मैं 
उसने मुझे देखा नहीं 

मेरी निगाह है उसी राह पर 
पर वो इधर मुड़ा नहीं । 

खुश रहना कह के चला गया 
मेरे दर्द की ये दवा नही 

दुनिया से चला जाऊंगा मैं 
पर उसको होगा पता नहीं ।

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।

मैं लिखना चाहता हूं 
फिलिस्तीन और इजराइल पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
यूक्रेन और रूस पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
मणिपुर और मेवात पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
दुनिया की हर हिंसा और मौत पर 
अपने आंसुओ कि स्याही बना कर 
लिखना चाहता हूं मैं 
पर ये क्या हिंसा सोचते ही 
आंसू लाल हो गए सुर्ख लाल 
मेरे हाथ कांपने लगे ओठ लरजने लगे 
गिर गई कलम मेरे हाथ से 
और गिर कर बंदूक बन गई 
नही उठा रहा हूं ये बंदूक मैं 
कि
मेरे भीतर का भी जानवर न जाग जाए 
नही लिख रहा में अब कुछ भी 
और आंसू भी तो गायब है 
कौन मेरा कोई सगा मरा है 
मैं क्यों परवाह करू इन सबकी 
जब मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक देगी 
तब उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।