मंगलवार, 21 सितंबर 2010

दूर तक दिखता समुंदर और आगे कुछ भी नही

दूर तक दिखता  समुंदर और आगे कुछ भी नही
दिख रहा है वो सही है या सत्य फिर कुछ और है
वो दूर बहुत दूर आसमा और समुन्दर मिल रहे है 
क्या सचमुच मिल रहे है, क्या वही अंतिम छोर है
ये कौन है बे खयाल जा रहा है उस अंतिम छोर को
क्या इरादा है इनका कौन है ये कहा इसका ठौर है
अरे रोको कोई तों रोको  इन्हें वरना ये डूब जायेंगे
क्या ये जानते है कि सौन्दर्य नही मौत चहु ओर है
ये नीला पानी बुलाता है प्रेम से और निगल जाता है
देखो ऊपर से शांत दीखता है पर भीतर बड़ा शोर है 
कौन है ये मौन है जो चले जा रहे है राम लक्षमण से
क्या फिर सरयू दोहराएंगे या फिर मन में कुछ और है

1 टिप्पणी :