शनिवार, 25 सितंबर 2010

संगम पर मिली गंगा,जमुना से बोली

संगम पर मिली गंगा,जमुना,बोली सुन मेरी बहना
इतने दिन तों अलग रह चुके ,अब  संग हमें बहना 
बादल पापा गरजे खूब गरज  ,गरज कर बरसे खूब
माँ पहाड़ की गोद भर गयी देख कर सभी हरसे खूब
मैदानों से ब्याह  किया कितनी मुसीबत देखी बहना
गन्दा खाना गन्दा पीना गन्दा कपड़ा  गन्दा गहना
माँ  के घर से नीचे उतरे,बांध दिया बच्चो ने हमको
यहाँ बांधा वहा भी बांधा काट दिया बच्चो ने हमको
खाने को गन्दा ही सब कुछ पीने को गन्दा ही पानी
मै बोली मुझको बहने दो पर किसी ने बात ना मानी
सभी गन्दगी फेंका मुझ पर लाशो से भी मुझे सजाया
भद्दी मेरी शक्ल हो गयी पर किसी को तरस ना आया 
बचते बचाते मै तों आई हूँ पर तुम हो मुरझाई कैसे
जरा बताओ इसी उम्र में  तुम पर आफत आई कैसे
जमुना बोली क्या कहना बहना हम दोनों कि एक कहानी
क्या बोलू मन बहुत दुखी है, ख़त्म हो गयी अपनी जवानी  
अपने जब ऐसे अपने है तब क्या जीना है और क्यों बहना
जब अपनी कुछ क़द्र नही किसी के लिए कुछ क्यों सहना
भागो बहना जोर से भागो, वरना क्या क्या सहना होगा
बांध दिया गर फिर दोनों को तों  गंदे घर में रहना होगा
अच्छा बहना अब चलते है अब तों कुछ ये अंतिम पल है
आओ गले मिल बातें कर ले अपना नही अब कोई कल है   
देखो बाहें फैलाये मुस्कराते  समुन्दर मामा हमें बुलाते 
उनके घर हम सब का ठिकाना थपकी देकर हमें सुलाते
क्या क्या सहा कैसा वो घर था सब  सोच कर मै रोती हूँ
उधर जाओ तुम भी सो जाओ और उधर मै भी सोती हूँ

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें