शनिवार, 22 सितंबर 2012

दिल्ली क्या बोलती

दिल्ली क्या बोलती
रहस्य नहीं खोलती
भीतर भीतर खौलती
सबका सब तौलती
क्या होगा अगले पल
दिल्ली नहीं जानती
घनघोर अँधेरा है
ढूँढती सवेरा है
रास्ता दिखाए कौन
वाम तक पहुंचाए कौन
सबके मन में वार है
जेब में कटार है
बस मौका कब मिले
उसका इंतजार है
क्या दिल्ली कल बोलेगी
कुछ मन का खोलेगी
सब कुछ मौन है
रहनुमा कौन है
कोई है या कोई नहीं
ये नयी बात नहीं
दिल्ली बस नाम की 
बेदिल की दिल्ली है
बस मतलब दिल में है
चलाने को हथियार यहाँ
आँखों पर पट्टी बांध
हर कोई है तैयार यहाँ
जिसे चाहे जितना लगे 
पर केवल मेरा भाग्य जगे
दिल्ली का इरादा ये
दिल्ली का वादा ये
दिल्ली खामोश है
अंदर कितना शोर है
सोने का समय है पर
जागरण चारो ओर है
समुन्द्र का मंथन है
विष भी और अमृत भी
जनता को मिले केवल विष
अमृत पी जाते है
भेष बदल राक्षस कुछ
कहानी ये कभी और की
पर दिल्ली में है आज भी
युद्ध अभी जारी है
रक्षस और देवताओं में
दिल्ली और गांवों में ।




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