सोमवार, 4 नवंबर 2013

नहीं जन्म ले रही है कविता कई दिनों से

नहीं जन्म ले रही है
कविता कई दिनों से
कलम चलती ही नहीं
दिल सूख गया है
कोई हलचल नहीं होती
तो कैसे जन्म ले कविता
कुछ नहीं सूझता अब
लगता ही नहीं कि कुछ जीवन है
और
उसमे कुछ करना भी है
जैसे एक बड़ा ह्रदय आघात
ख़त्म कर देता है सब कुछ
वैसे ही किसी आघात ने
ख़त्म कर दिया है मुझे
और जो ख़त्म ही हो गया
उसकी कैसी हलचल ,क्यों हलचल
बस जिन्दा लाश के सामान
घिसट रहा हूँ बस समय पूरा करने को
तो कहा से कविता पैदा होगी
और कैसे चलेगी कलम ।

मेरी हुंकारों से तुझमे , जोश नहीं आया है क्या

मेरी हुंकारों से तुझमे , जोश नहीं आया है क्या
धनुषी टंकारों से तुझमे जोश नहीं आया है क्या
क्या मैं टेरू अर्जुन को कि गांडीव तुझे पकड़ा जाये
क्या कर्ण का कवच कुंडल ही है तुझको ललचाये 
क्या परशुराम का फरसा ही तुझको अब ताकत देगा
जिससे समुद्र डरा था क्या वो तीर तुझे हिम्मत देगा
क्या चन्द्रगुप्त को ले आऊं मैं तेरी युद्ध कहानी में
चाणक्य और द्रोनाचार्य भरे अब जोश तेरी जवानी में
तू कब उठ कर ललकारेगा बतला अब अर्जुन वीर मुझे
तू दुश्मन को कब मरेगा बतला अब अर्जुन वीर मुझे
तेरी सेना खड़ी तो हुयी गांडीव की टंकार सुनेगी कब
तू कब शंख को फूंकेगा युद्ध की ललकार सुनेगी कब
कब समझेगा युद्ध न्याय का न्याय सभी को देने को
सामने जितने अन्यायी हैं सबको अंतिम गति देने को
तुझको ईश्वर ने भेजा है और जनता ने ये ताकत दी हैं
अब अपना वचन निभाना है सबका कर्जा लौटना है
चल अर्जुन अब मोह छोड़ चल अब गांडीव उठा ले तू
बस जीत का लक्ष्य सामने और इसको लक्ष्य बनाले तू
फिर निश्चित जीत तुम्हारी है हर बाधा तुमसे हारी है
इस बार तुम्हारी बारी है और अब आगे की तैयारी है
अब देख तेरा जयगान यहाँ तेरा है कितना मान यहाँ
कुछ ऐसा कर जा तू अब तो बस तेरा हो सम्मान यहाँ
थोडा कठोर बन जा अर्जुन बस थोडा जोर लगा अर्जुन
फिर हर तम तेरे से हारेगा ,तू हर दुश्मन को मरेगा
लोगो का हक़ दिलवाएगा और आगे बढ़ता जायेगा ।



ये दिया है पर सूरज को भी ललकारेगा

ये दिया है पर सूरज को भी ललकारेगा
अँधेरा हो कैसा भी पर ये उसको मारेगा