शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

ना मैं थकूंगा न मैं हरगिज झुकूँगा

ना मैं थकूंगा न मैं हरगिज झुकूँगा
खुशफहमी न पालो नहीं मैं रुकुंगा
न जाने कितने झंझावातो को देखा
कितनी कठिन दिन रातो को देखा
न पहले रुका न अब मैं रुकुंगा
न पहले थका न अब मैं थकूंगा ।
चोटी  पर चढ़ कौन बसता वहां है
समन्दर में जा कौन रुकता वहां है
मैं भी सैलानी हूँ मैं क्यों बसूँगा
मेरा भी सफ़र है मैं क्यों रुकूंगा
ये जीवन है जब तक चलते ही जाना
आसमा पर उड़ना जमी पर भी आना
अंतिम सफ़र आसमा पर बसूँगा
जमी घूम ली तो यहाँ क्यों रुकूंगा
इश्वर होने की ग़लतफ़हमी है तुमको
मैं इंसा हूँ  खुद पर भरोसा है मुझको
हैं मेरे पांव अपने मैं उनसे चलूँगा
न पहले रुक था न अब मैं रुकुंगा
कोई खुद को भगवान माने तो माने
अपनी सारी शक्ति मुझ पर ही ताने
ऐसी शक्ति से मैं न हरगिज डरूंगा
न पहले रुका था न अब मैं रुकुंगा ।

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