बुधवार, 8 जून 2016

इंसान से अच्छा तो कांच है

इंसान से अच्छा तो कांच है
जब टूटता है
तो आवाज तो आती है
और
उफ़ निकली है
किसी की
कोई दौड़ता है उधर
कि क्या टूट गया
आवाज तो थी
पर किसके टूटने की
और
इंसान टूट जाता है
बुरी तरह
चूँकि कोई आवाज
नहीं आती
तो कोई नहीं दौड़ता
उसकी तरफ
उसका टूटना
उसके चेहरे पर
उभर आता है
पर किसके पास है वक्त
की चेहरे देखता रहे
और
रख दे पीठ पर हाथ सहारे को
और
सहला दे इतनी गहरी
चोट को
हा इंसान से अच्छा
और
खुशकिस्मत तो कांच है ।

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