रोटी थी कपड़ा और मकान अच्छा सा
जरूर जरूर ये कोई अपना सपना था
वो बिन पहचाने बगल से निकल गया
जरूर जरूर कोई बहुत ही अपना था ।
जरूर जरूर ये कोई अपना सपना था
वो बिन पहचाने बगल से निकल गया
जरूर जरूर कोई बहुत ही अपना था ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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