मंगलवार, 14 नवंबर 2017

क्रांति का ये नया अंदाज होगा

अभी अभी लिखी कविता ---
ये देश जागीर है किसकी जनता की ,सत्ता की या पूजीपतियो की और नौकरशाही की तय होना अभी भी बाकी बहाता है किसान पसीना और मोटा हों जाता है बनिया उसकीं उपज पर व्यापारी और बिचौलिया बहाता है मजदूर पसीना और फिर होती है यहीं कहानी रक्षा करता जवान देश की और सीना फुला कर फायदा उठा लेता है नेता आखिर कौन है मुल्क का मालिक ये सब या फिर सब ,सारी जनता क्यों नहीं मिलता सबको सबका वाजिब हक कब बदलेगी ये व्यवस्था और सचमुच का लोकतंत्र मिलेगा संभव बराबर सब होंगे जब समान शिक्षा सबको मिलेगी सामान चिकित्सा होगी सबको और सामान अवसर भी होगा जरूरत है सम्पूर्ण क्रांति की गाँधी के रस्ते पर चल कर रक्तहीन पर समीचीन फैसलाकुन क्रांति की कब आएगी कौन करेगा मैं निकलूं तुम भी निकलो सबको ही हम साथ मिला चलो हाथ से हाथ मिला ले जो शोषक है मिलकर उनकी भी इस क्रांति को समझा दे हर अंतिम का दर्द दिखा दे शायद वो समझ ही जाये वो भी हमसे हाथ मिलाये वर्ना हमको तो उठना ही हर अंतिम को तो जगना ही मुट्ठी भींच अधिकार मांग लो हो सबका प्यार मांग लो वर्ना हक तो लेना ही है जिनके पास है देना ही है पांच गाँव जब न देता हो लड़कर अपना हिस्सा लेना पर उका उसको दे देना नयी क्रांति का आगाज होगा सबका अपना कल भी होगा सबका अपना आज होगा क्रांति का ये नया अंदाज होगा





























































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